डीएनए एक्सप्लेनर
मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार की कठपुतली कहा जा रहा है. अपनी स्वतंत्रता साबित कर पाना, उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
डीएनए हिंदी: कांग्रेस (Congress) पार्टी को नया मुखिया मिल गया है. दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) बुधवार को कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं. उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री और तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) को बड़े अंतर से हराया है. लंबे समय बाद कांग्रेस को नेहरू-गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष मिला है. हालांकि, मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत यह भी साबित कर गई कि अध्यक्ष पद उसे ही मिलेगा, जिस पर गांधी परिवार का 'वरदहस्त' होगा.
बाहरी तौर पर यह नजर आ रहा है कि कांग्रेस में लोकतंत्र है. विपक्ष जिस परिवारवाद की बात कर रहा था, उसकी छाया से कांग्रेस फिलहाल अलग नजर आ रही है. मल्लिकार्जुन खड़गे की उम्र 80 साल है. उनके सामने कुछ वास्तविक चुनौतियां हैं, जिनसे बिना उबरे, उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है.
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साल 2019 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर मल्लिकार्जुन खड़गे आजतक कोई चुनाव नहीं हारे हैं. सियासी तौर पर वह अजेय बने रहे हैं. जितना बेहतर उनका जनता से कनेक्शन रहा है, उतना ही संगठन से. उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) का समर्थन व्यापक तौर पर हासिल था, यही वजह है कि तमाम हाथ-पैर चलाने के बाद भी शशि थरूर उनके सामने नहीं टिक सके. शुरू से कहा जा रहा था कि मल्लिकार्जुन खड़गे ही कांग्रेस के अध्यक्ष होंगे.
बिखरी पार्टी को कैसे संभालेंगे मल्लिकार्जुन खड़गे?
कांग्रेस ऐसी स्थिति में पहुंच गई है कि बड़े संगठनात्मक बदलाव की जरूरत पार्टी को है. करीब ढाई दशक से कांग्रेस अध्यक्ष का पद गांधी परिवार के पास रहा है. उन्हें चुनाव में खुद को साबित करने की सबसे बड़ी चुनौती है. कांग्रेस आज के वक्त में सबसे बिखरी हुई पार्टी है.
पार्टी को नए सिरे से जोड़ने की जरूरत है. उनकी बातें स्थानीय स्तर पर लोग कितना मानते हैं, यह भी ध्यान देने वाली बात है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ हैं, राजस्थान में अशोक गहलोत हैं, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल हैं. ऐसे नेता मल्लिकार्जन खड़गे के प्रति कितने जवाबदेह होते हैं यह देखने वाली बात है. मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने बिखरी हुई पार्टी को जोड़ने की सबसे बड़ी चुनौती है.
क्या नेता बदलने से बदल जाएगी कांग्रेस?
किसी भी राजनीतिक पार्टी का सिर्फ चेहरा बदल देने से पार्टी का मूल ढांचा नहीं बदलता. यह सच है कि न तो मल्लिकार्जुन खड़गे जननेता हैं, न ही उनकी सार्वजनिक स्वीकृति है. हिंदी भाषी क्षेत्रों में तो उनके नाम से भी बहुत लोग परिचित नहीं है. भीड़ सिर्फ गांधी परिवार खींच सकता है, यह सच्चाई है. ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे किस मेरिट के भरोसे से कांग्रेस का भविष्य बदलेंगे, यह साफ नजर नहीं आ रहा है.
अगर मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस को फिर से स्थापित करना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले इन 5 चुनौतियों से पार पाना होगा.
1. कांग्रेस का पुनर्निर्माण
कांग्रेस पार्टी के काम करने के तौर-तरीके अब भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के पास विचारधारा के स्तर पर कुछ भी नया नहीं है, जिससे जनता खिंची चली आए. बीजेपी के खिलाफ काउंटर नैरेटिव विकसित करने की सोच भी कांग्रेस नहीं तैयार कर पा रही है.
कांग्रेस को चुनाव प्रचार के तरीकों को बदलने पर ध्यान देना होगा. नए कांग्रेसी नेता हिंदुत्व, अर्थव्यवस्था, राष्ट्रवाद और मुस्लिम राजनीति पर ऐसे बंटे हैं कि कोई एकमत नजर नहीं आता. कांग्रेस के नेता अलग-अलग बयानबाजी के लिए मशहूर हैं. खड़गे को पहले विभाजन पर नकेल कसनी होगी.
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2. गांधी परिवार की छत्र-छाया से बाहर निकलना
मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार की कठपुतली कहा जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि शशि थरूर इसलिए चुनाव हारे क्योंकि उनकी स्वतंत्र आवाज थी, वह पार्टी के भीतर सुधार की मांग कर रहे थे. खुद को गांधी परिवार की छत्र-छाया से अलग साबित करना मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. खुद की स्वतंत्र छवि गढ़ने में मल्लिकार्जुन खड़गे कितने कामयाब होते हैं, यह भी बड़ी चुनौती बनी हुई है.
कांग्रेस आलाकमान का नाम आते ही चेहरा सिर्फ राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का उभरता है. आम कार्यकर्ताओं के बीच अपनी प्रासंगिकता कितना साबित कर पाने की चुनौती भी खड़गे के पास है. साल 1970 के दशक के बाद यह पहली बार है जब गांधी परिवार कांग्रेस की राजनीति में तो सक्रिय होगा लेकिन पार्टी की कमान नहीं संभालेगा.
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गांधी परिवार से भविष्य में टकराव पैदा होगा या नहीं, यह भी देखने वाली बात होगी. हालांकि, खुद राहुल गांधी यह कह चुके हैं कि हर कांग्रेसी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष की वरिष्ठता स्वीकार करनी होगी. अब कांग्रेस के सुपरबॉस को गांधी परिवार भी बॉस मानता है या नहीं, यह भी देखने वाली बात होगी.
3. विपक्षी एकता की बागडोर कैसे संभालेंगे मल्लिकार्जुन खड़गे?
यह सच है कि कांग्रेस के बिना विपक्ष की कल्पना करना मुश्किल है. मल्लिकार्जुन खड़गे भी यही मानते हैं. लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर विपक्षी पार्टियां कांग्रेस की प्रभुता स्वीकार नहीं कर पा रही हैं. उन्हें यह साबित करना होगा कि कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी है और उसके बिना विपक्षी एकता संभव नहीं है.
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मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने चुनौती है कि वह ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, उद्धव ठाकरे और केसीआर जैसे नेताओं को एकजुट करें और कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) को दोबारा जीवित करें क्योंकि अब सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष नहीं हैं. वह कांग्रेस अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे चुकी हैं.
4. कांग्रेस में संगठनात्मक सुधार कैसे करेंगे मल्लिकार्जन खड़गे?
कांग्रेस में संगठनात्मक सुधार की सबसे ज्यादा जरूरत है. कांग्रेस कार्यसमिति के लिए होने वाले चुनावों को सही तरह से करा ले जाना भी मल्लिकार्जुन खड़गे की सबसे बड़ी चुनौती है. कांग्रेस के संविधान में कहा गया है कि सीडब्ल्यूसी में पार्टी अध्यक्ष, संसद में कांग्रेस पार्टी के नेता और 23 अन्य सदस्य शामिल होंगे, जिनमें से 12 सदस्य AICC का चुनाव करेंगे. सीडब्ल्यूसी के चुनाव पिछली बार 1997 में और उससे पहले 1992 में हुए थे, और दोनों मौकों पर एक गैर-गांधी अध्यक्ष चुने गए थे.
कांग्रेस अब एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत पर आगे बढ़ेगी. युवा चेहरों पर जोर देगी. कांग्रेस सेवा दल को भी सक्रिय करने की सबसे ज्यादा जरूरत फिलहाल पार्टी को है. देखने वाली बात यह है कि मल्लिकार्जुन खड़गे कितने कामयाब होंगे.
5. पीढ़ियों के टकराव को कैसे रोकेंगे मल्लिकार्जुन खड़गे?
कांग्रेस, पीढ़ियों के टकराव से जूझ रही है. मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में कहा जा रहा था कि AICC ने उन्हें उतारा है, यही वजह है कि युवा और बुजुर्ग नेताओं ने उन्हें वोट किया. युवा नेताओं और वरिष्ठ नेताओं के बीच का टकराव राजस्थान में नजर आया था.
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राजस्थान में युवाओं ने शशि थरूर को चुना और मल्लिकार्जुन खड़गे को वरिष्ठ नेताओं ने चुना. जाहिर सी बात है कि युवा समर्थक सचिन पायलट को पसंद करते थे और बुजुर्ग अशोक गहलोत को. यह समीकरण वहां अध्यक्ष पद के चुनाव में भी नजर आया. केरल, तेलंगाना, गोवा, दिल्ली और पंजाब जैसे कई राज्यों में भी यही नजारा दिखा.
6. कांग्रेस को नहीं पसंद आया बदलाव, कैसे युवाओं को संभालेंगे खड़गे?
शशि थरूर युवाओं की पसंद थे. युवा नेताओं की कमी से कांग्रेस जूझ रही है. शशि थरूर पार्टी में बदलाव चाहते थे. मल्लिकार्जुन खड़गे पुराने ढर्रे पर चल रहे थे. सोनिया गांधी अपने पद से हट चुकी हैं.
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के समर्थक चाहते हैं कि पार्टी की कमान खड़गे संभाले. शशि थरूर परिवर्तन पसंद करने वाले नेता रहे हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने कांग्रेस के अंतर्विरोध को खत्म करने की भी चुनौती है.
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