डीएनए एक्सप्लेनर
अभी बीते दिनों ही बलूच उग्रवादियों ने पाकिस्तान में एक ट्रेन को हाईजैक कर पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया था। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ. करीब 100 साल पहले, चीन में डाकुओं ने लग्जरी पेकिंग एक्सप्रेस को हाईजैक कर लिया था, तब ट्रेन में 300 यात्री थे जिनमें ज्यादातर विदेशी थे.
अकसर ही हम विमान हाईजैक की खबरों से दो चार होते हैं, मगर ऐसे मामले कम ही सामने आए हैं, जब अपनी जायज या नाजायज मांगों को मनवाने के लिए किसी ने ट्रेन अपहरण को अंजाम दिया हो. वजह शायद यह हो सकती है कि आकाश में उड़ते विमान को किडनैप करना आसान है. जबकि ट्रेन के मामले में दुश्वारियां इसलिए हैं, क्योंकि उसके लिए पटरी होना एक अहम शर्त है. 11 मार्च को, बलूच आतंकवादियों ने पाकिस्तान में पेशावर जाने वाली एक पैसेंजर ट्रेन का अपहरण कर लिया, जिसमें सैन्य कर्मियों सहित लगभग 180 लोग बंधक बनाए गए.
घटना के बाद दिन भर चले रेस्क्यू ऑपरेशन में आतंकवादियों, लोगों और अर्धसैनिक बलों के जवानों सहित दर्जनों लोगों के मारे जाने के बाद अपहरण और बंधक संकट अंततः समाप्त हो गया.
कोई अपनी मांगों के एवज में पूरी ट्रेन किडनैप कर सकता है? इस बात ने देश दुनिया के लोगों को विचलित कर दिया है. ऐसे में हमारे लिए भी यह बता देना बहुत ज़रूरी हो जाता है कि ट्रेन अपहरण की पहली दर्ज की गई घटना 100 साल पहले चीन में हुई थी, और दिलचस्प यह कि बंधक संकट एक महीने से भी अधिक समय तक चला था.
बताते चलें कि तब लग्जरी पेकिंग एक्सप्रेस को हाईजैक किया गया था और 300 यात्रियों को बंधक बना लिया गया था, जिनमें से ज़्यादातर विदेशी थे. उन्हें 37 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया और कुछ सबसे अमीर यात्रियों से उनके कीमती सामान लूट लिए गए थे.
इस घटना को 'लिनचेंग आउटरेज' कहा गया, क्योंकि ट्रेन चीन के हेबेई प्रांत में लिनचेंग काउंटी के पास डीरेल की गई थी. 6 मई, 1923 की सुबह, दुनिया के सबसे आधुनिक रेल इंजन में से एक शंघाई से बीजिंग जा रहा था, जब इंजीनियर ने ट्रैक के पास छिपे हुए संदिग्ध लोगों को देखा. उसने ट्रेन की गति धीमी कर दी, इस बात से अनजान कि आगे की पटरियों पर तोड़फोड़ की गई थी. जैसे ही ट्रेन क्षतिग्रस्त सेक्शन पर पहुंची, वह पटरी से उतर गई.
घटना का जिक्र करते हुए जेम्स ज़िमरमैन ने अपनी पुस्तक द पेकिंग एक्सप्रेस में लिखा है कि, 'इंजन ने एक तरफ़ झटका खाया और ढीली पटरियों से फिसलने के कारण रुक गया.' पटरी से उतरने की घटना ने यात्रियों के लिए एक महीने तक चलने वाली मुसीबत की शुरुआत कर दी.
डाकुओं ने ट्रेन को लूटा, जिसमें प्रथम और द्वितीय श्रेणी के यात्री शामिल थे. उनमें शंघाई ओपियम कंबाइन से जुड़ा एक इतालवी वकील, रोमानिया में जन्मे एक अमीर कार डीलर और अमेरिकी व्यवसायी जॉन डी रॉकफेलर जूनियर की भाभी शामिल थीं.
एक रहस्यमय ब्रिटिश-रोमानियाई यात्री को गतिरोध में गोली मार दी गई, उसका अतीत समय की तरह ही धुंधला था. डाकुओं ने उसके शरीर पर पैर रखने से मना कर दिया, इसलिए उन्हें उसका बैग नहीं मिला जिसमें नकदी और गोला-बारूद भरा हुआ था.
तब अट्ठाईस विदेशियों को 70 चीनी यात्रियों के साथ, अंधेरे ग्रामीण इलाकों से होकर गुजरने के लिए मजबूर किया गया था.
पेकिंग एक्सप्रेस: उस दौर में क्या थे चीन के हालात
उस समय, चीन में बहुत ज़्यादा विभाजन था.विदेशियों को कानून से ज़्यादा विशेषाधिकार प्राप्त थे, जबकि स्थानीय लोगों को राजनीतिक अस्थिरता के परिणाम भुगतने पड़ते थे. 1916 में युआन शिकाई की मृत्यु के बाद चीन पर वॉर लॉर्ड्स का नियंत्रण हो गया था, और बीजिंग की सरकार वैधता के लिए संघर्ष कर रही थी.
ली युआनहोंग, अपने दूसरे राष्ट्रपति काल में, गहराते विखंडन को रोकने में असमर्थ थे. कराधान अव्यवस्थित था और गांवों को बार-बार सरदारों द्वारा अपने अंतहीन संघर्षों के लिए भुगतान की मांग करते हुए खाली कर दिया जाता था.
अपहरण के पीछेजिन डाकुओं का हाथ था वो शांदोंग स्वायत्त सेना का हिस्सा थे, जो मूल रूप से नागरिकों को वॉरलॉर्ड्स से बचाने के लिए बनाई गई थी.
इतिहासकार फिल बिलिंग्सले ने बैंडिट्स इन रिपब्लिकन चाइना में एक डकैत के हवाले से लिखा है कि, ' हमारी डाकू बनने की कोई इच्छा नहीं है, लेकिन अविश्वसनीय सरकार के इस संकटपूर्ण युग में, हम अपनी शिकायतों के निवारण के लिए जोखिम उठाने के लिए खुद को मजबूर पाते हैं.'
1923 में पेकिंग एक्सप्रेस को निशाना बनाने वाले डाकुओं ने 300 लोगों को बंधक बना लिया था, जिनमें से केवल 25 चीनी थे. इन लोगों को पहाड़ों पर ले जाया गया और लगभग एक महीने तक बंधक बनाकर रखा गया.
आज की मुद्रा में लगभग 1.5 मिलियन डॉलर की फिरौती की मांग पूरी होने और अपहरणकर्ताओं को माफ़ी मिलने के बाद ही यात्रियों को छोड़ा गया था.
'ट्रेन अपहरण के कारण विदेशियों पर फिर हुए हमले
बिलिंग्सले ने यह भी कहा कि, इसका देशव्यापी असर हुआ, जिसके कारण 'पूरे चीन में विदेशियों पर अचानक डाकुओं के हमले शुरू हो गए, साथ ही ट्रेन को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं में भी उछाल आया.हालांकि, इस अपहरण से विदेशियों को एक और संदेश मिला, कि बीजिंग सरकार उनकी सुरक्षा करने में असमर्थ है.चीनी अधिकारियों ने नए नियम बनाए और ट्रेनों की बेहतर सुरक्षा के लिए पुलिस गश्त, सशस्त्र गार्ड और स्काउट शामिल किए.
अपनी किताब में बिलिंग्सले ने इसका भी जिक्र किया कि, 'बीस साल पहले बॉक्सर क्षतिपूर्ति के मामले की तरह, विदेशी शक्तियां स्पष्ट रूप से 'चीनियों' से लिनचेंग में 'श्वेतों' पर किए गए अपमान की कीमत वसूलने के लिए दृढ़ थीं.' लेकिन, कई लोगों का तर्क है कि यह एक ऐसा हमला था जिसने चीन गणराज्य को काफी हद तक तोड़ दिया था.
बंधक संकट समाप्त होने के एक दिन बाद ही राष्ट्रपति ली युआनहोंग को पद से हटा दिया गया. इसके बादअगले चार वर्षों में, चीन ने नौ राष्ट्रपतियों को देखा. माना जाता है कि जिस दौरान चीन में ये घटना हुई, एक मुल्क के तौर पर चीन ने भारी अस्थिरता को देखा.
बहरहाल हमारा विषय पेकिंग एक्सप्रेस का अपहरण था तो जाते-जाते यह बताना भी बहुत ज़रूरी है कि पेकिंग एक्सप्रेस का अपहरण ट्रेन अपहरण के पहले दर्ज मामलों में से एक है और इसने चीन के साथ-साथ पूरी दुनियाको हिलाकर रख दिया था.
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