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गोल्ड नहीं डायमंड नहीं, यह है कश्मीरी मसाला जिसे रत्ती में तौलते और लाखों में बेचते हैं

कश्मीरी केसर में ईरानी केसर के रंग, स्पेन के केसर के स्वाद के साथ अपनी एक ख़ास सुगंध होती है जो इसे बेहतरीन बनाती है.

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डीएनए हिन्दी : रत्ती में तौलते हैं. लाखों में बेचते हैं. नहीं इसे सोने-हीरे की कैटेगरी में नहीं रखा जाता है पर हाँ, परख केवल जौहरियों को होती है. हम बात एक ख़ास मसाले की कर रहे हैं जिसके मुरीद बस आह-वाह करके रह जाते हैं. बात तो ख़ास किस्म कश्मीरी केसर की  हो रही है. क्यों है कश्मीर का केसर ख़ास? क्या बनाता है इसे और भी शानदार?

भारत के केसर का घर है कश्मीर

कश्मीर के चार ज़िलों पुलवामा, बडगाम, श्रीनगर, किश्तवार में केसर की खेती होती है. इसमें 86% केसर की खेती अकेले पुलवामा ज़िले के पाम्पोर में होती है. पाम्पोर को भारतीय केसर का घर भी कहा जाता है. भारत में केसर की खेती के कुल इलाक़ों को जोड़ा जाए तो वह केवल 3715 हेक्टेयर बैठेगा. प्रति हेक्टेयर तीन से चार किलो केसर की खेती होती है. कश्मीर का केसर मसालों के बाज़ार में विशेष स्थान रखता है. क्यों इसे हासिल है वह ख़ास जगह? आइये जानते हैं केसर के किसानों से ही...

सुगन्ध, स्वाद और खुशबू – तीनों  का मेल

पाम्पोर में पिछली तीन पीढ़ियों से केसर उत्पादन कर रहे फ़ारुख अहमद गनाई का कहना है कि कश्मीरी केसर में ईरानी केसर के रंग, स्पेन के केसर के स्वाद के साथ अपनी एक ख़ास सुगंध होती है जो इसे बेहतरीन बनाती है. पाम्पोर में उपजाये जाने वाले केसर में यह विशिष्टता बहुत क़ायदे से नज़र आती है. इसी वजह से यह मसाला मार्किट में डेढ़ से दो लाख रुपये प्रतिकिलो आसानी से बिक जाता है.

बल्ब से होता है केसर

यह पूछने पर कि क्या केसर के बीज हर साल लगाये जाते हैं? इस बारे में स्थानीय किसानों ने बताया कि केसर का उत्पादन बल्ब से होता है. ज़मीन में एक बार बल्ब लगा दिया जाता है और वह दसेक साल तक तय मौसम में फसल देता रहता. ये बल्ब ज़मीन के अन्दर द्विगुणित भी होते रहते हैं. किसान समय-समय पर अतिरिक्त बल्बों को निकाल कर बेच देते हैं.

भविष्य और वर्तमान

कश्मीर के केसर किसानों से इसके उत्पादन से जुड़े भविष्य के बारे में बातचीत शुरू की और यह पूछा कि क्यों इस कश्मीरी मसाले को रत्ती में तौलते हैं और लाखों में बेचते हैं? इस सवाल को सुनते ही उनके चेहरे पर एक मायूसी सी छा गई. किसानों ने एक सुर में कहा कि बीते कुछ सालों में केसर के उत्पादन में बहुत कमी आयी है. वर्तमान में यह पहले के कुल उत्पादन का एक हिस्सा भर रह गया है. केसर के खेतों के आस-पास सीमेंट की फैक्ट्री के होने ने मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. साथ ही रिहायशी इलाक़ों में कमी की वजह से कई लोगों ने अपने खेतों पर घर बनवा लिए हैं. यह विशेष मेहनत की फसल है जिससे बहुत शानदार आमदनी की उम्मीद अब उतना नहीं रह गयी है फिर भी फारुख गनाई जैसे कई उत्पादक हैं जो लगातार इस पर काम कर रहे हैं और कश्मीर के केसर की गंध, स्वाद और रंगत को बचाये रखने के लिए लगातार प्रयत्नशील हैं.

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