चुनाव
अखिलेश यादव की चुनौतियां UP Election 2022 को लेकर बढ़ गई हैं. उन्हें वोट ट्रांसफर से लेकर पार्टी की आंतरिंक नाराजगी का भी सामना करना पड़ सकता है.
Updated : Jan 15, 2022, 11:21 AM IST
डीएनए हिंदी: UP Election 2022 से पहले भाजपा छोड़कर सपा में आ रहे नेताओं और छोटे दलों के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव जोश में दिख रहे हैं. उन्होंने एक नीति के तहत इस बार उत्तर प्रदेश के छोटे दलों के साथ ही गठबंधन किया है. इसके विपरीत अब सवाल ये उठता है कि जिनके साथ अखिलेश यादव चुनावी समर में उतरेंगे उनसे अखिलेश को कितना फायदा होगा और क्या वो फायदा भाजपा को हराने के लिए काफी होगा.
साल 2017 के विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव ने कांग्रेस से गठबंधन किया था जिसमें पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ था और पार्टी बुरी तरह हारी थी. वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बसपा के साथ हुए गठबंधन में फायदा बसपा को मिला. बसपा शून्य से 10 सीटों पर चली गई लेकिन सपा दहाई का आंकड़ा भी न छू सकी. ऐसे में अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उन्होंने जो गठबंधन किया है वो किस हद तक फायदा देगा.
अखिलेश ने पश्चिमी उत्तर में आरएलडी को विशेष महत्व दिया है. पहली लिस्ट में जहां सपा ने 9 प्रत्याशी उतारे हैं तो वहीं आरएलडी के 20 प्रत्याशी हैं. एक खास बात यह है कि पिछले चुनावों में आरएलडी को मात्र एक सीट मिली थी. इसके बावजूद इतना बड़ा सीट शेयर देकर अखिलेश ने एक रिस्क ले लिया है.
वहीं ओपी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ भी सपा का गठबंधन है और अभी सीटों को लेकर कुछ भी निश्चित नहीं हुआ है. पिछले चुनावों में मोदी लहर के बावजूद भाजपा गठबंधन के साथ ओपी राजभर की पार्टी 8 में से 4 सीटें जीत पाई थी और इन चुनावों में राजभर अखिलेश पर ज्यादा सीटों का दबाव बना सकते हैं जो कि अखिलेश के राजनीतिक जनाधार को ही चोट पहुंचा सकता है.
ऐसे में UP Election 2022 को लेकर अब सपा के सामने चुनौती है कि कैसे छोटे दलों के जनाधार को अपने जनाधार के साथ मिलाया जाए क्योंकि इससे गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत हो सकती है. सपा ने इस चुनौती को समझते हुए ही गठबंधन के साथियों के साथ जिलों में समन्वय बैठकें करवाईं. अखिलेश की चुनौती यही है कि उनके साथ कांग्रेस और बसपा गठबंधन का हाल न हो जाए.
गठबंधन के वोट ट्रांसफर के अलावा सपा में इस वक्त दलबदलुओं के आगमन की होड़ है. सभी टिकट की आशा से ही आ रहे हैं. ऐसे में दलबदलुओं और गठबंधन वाले दलों के नेताओं को जब टिकट वितरण का काम पूरा होगा तो अपनी पार्टियों के लोगों को रूठने से रोकना होग जिनके टिकट काटकर सहयोगी दलों को सीट दी जाएगी उनकी नाराजगी पार्टी को महंगी पड़ सकती है.
ये सारे ऐसे पहलू हैं जो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के सामने चुनौती बनकर खड़े हैं. गठबंधन से लेकर जनता का रुख और टिकट बंटवारे तक के खेल में अखिलेश की अग्निपरीक्षा होगी.