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Khambhalia Assembly constituency: अहीरों के गढ़ को भेद पाएंगे AAP के इशुदान गढ़वी? जानें खंभालिया का सियासी समीकरण

Gujarat Elections: खंभालिया की सियासत में गढ़वी की मौजूदगी ने इस बार उथल-पुथल मचा दी है. अब देखना है 8 दिसंबर को राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है...

Khambhalia Assembly constituency: अहीरों के गढ़ को भेद पाएंगे AAP के इशुदान गढ़वी? जानें खंभालिया का सियासी समीकरण

खंभालिया में इशुदान गढ़वी की प्रतिष्ठा दांव पर.

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डीएनए हिन्दी: गुजरात की सांस्कृतिक पहचान सोमनाथ और द्वारिका से है. देवभूमि द्वारिका में कच्छ की खाड़ी के पास खंभालिया है. खंभालिया (Khambhalia) देवभूमि द्वारिका का डिस्ट्रिक्ट हेडक्वॉटर भी है. पहले यह जामनगर जिले का हिस्सा हुआ करता था. कुछ साल पहले ही इसे जिले का दर्जा मिला है. इस बार गुजरात विधानसभा चुनावों में खंभालिया सीट की खास चर्चा हो रही है. इस सीट से आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार इशुदान गढ़वी (Isudan Gadhvi) मैदान में हैं. यहां सिर्फ गढ़वी ही नहीं आम आदमी पार्टी की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है. आइए हम इस सीट का विस्तार राजनीतिक, सामाजिक विश्लेषण करते हैं. 

इस सीट पर अहीर समुदाय की बहुलता है. एक-दो अपवादों को छोड़ दें तो यहां से अहीर समाज का शख्स ही विधायक होता रहा है. यहां अहीर कितने प्रभावी हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस सीट पर ज्यादा मौकों पर जीतने और हारने वाले कैंडिडेट अहीर ही रहे हैं. यानी नंबर एक पर अहीर और नंबर दो पर भी अहीर.

इस बार यहां चतुष्कोणिय मुकाबले की उम्मीद जताई जा रही है. यहां से कांग्रेस ने सिटिंग विधायक विक्रम अर्जनभाई पर फिर से भरोसा जताया है. वहीं, बीजेपी ने मुलुभाई हरदासभाई बेरा को टिकट दिया है. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने इशुदान गढ़वी को मैदान में उतारा है. वहीं असुदुद्दीन औवेसी की पार्टी AIMIM ने बुखारी याकूब मोहम्मद हुसैन को उम्मीदवार बनाया है.

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खंभालिया का चुनावी इतिहास
इस सीट पर अहीर कितने प्रभावी हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 1972 के बाद यहां से दूसरे समुदाय का एक भी विधायक नहीं हुआ है. आइए हम पिछले 4 चुनाव का विश्लेषण करते हैं.

2012 में यहां से कांग्रेस ने इभा अहीर को टिकट दिया था. वहीं बीजेपी ने पूनमबेन मादाम को चुनाव में उतारा था. 2012 में बीजेपी की पूनमबेन ने 38 हजार से ज्यादा वोटों से इभा अहीर को हराया था. पूनमबेन को जहां 79,087 वोट मिले थे, वहीं इभा अहीर को 40,705 वोट मिले.

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2014 में पूनमबेन जामनगर से सांसद बन गईं. खंभालिया में उपचुनाव हुआ. इस बार कांग्रेस की ओर से मेरामान मर्खी अहीर और बीजेपी की तरफ से मुलुभाई हरदासभाई बेरा आमने-सामने थे. इस बार कांग्रेस ने बाजी मार ली. कांग्रेस के मेरामान मर्खी ने मुलुभाई बेरा को शिकस्त दी. जहां मेरामान मर्खी को 66,410 वोट मिले, वहीं मुलुभाई को 65,202 वोटों पर संतोष करना पड़ा. इस कड़े मुकाबले में 1,208 वोटों से मुलुभाई को हार झेलनी पड़ी. 

2017 के चुनाव में दोनों पार्टियों ने एक बार फिर उम्मीदवार बदला. इस कांग्रेस की तरफ से विक्रमभाई अर्जनभाई मादाम चुनावी मैदान में थे. वहीं बीजेपी की तरफ से कुलुभाई चावड़ा थे. इस बार भी बाजी कांग्रेस के साथ में रही. कांग्रेस के विक्रमभाई को 79,779 वोट मिले तो बीजेपी के कुलुभाई को 68,733    वोट. 

2022 में खंभालिया की फिजा बदली हुई है. खंभालिया में मुलुभाई और विक्रमभाई की सियासी अदावत करीब 3 दशक पुरानी है. करीब 20 साल बाद दोनों सीधे एक-दूसरे के सामने होंगे. कांग्रेस ने इस बार भी विधायक विक्रमभाई मादाम पर भरोसा जताया है. वहीं, बीजेपी ने अहीर समाज के दिग्गज नेता मुलुभाई बेरा को टिकट दिया है. आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार इशुदान गढ़वी मैदान में हैं. यहां गढ़वी समाज का वोट भी ठीक-ठाक है. वहीं ओवैसी की पार्टी भी ताल ठोक रही है.

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विकास की राह देखता खंभालिया
खंभालिया जामनगर से कुछ साल पहले ही अलग हुआ है. इस जिले में द्वारिकाधीश मंदिर होने की वजह से देशभर से पर्यटक आते हैं. फिर भी खंभालिया गुजरात के अन्य जिलों की तुलना में पिछड़ा है. खंभालिया में अस्पताल और शिक्षण संस्थाओं की भारी कमी है. उच्च शिक्षा और इलाज के लिए यहां के लोगों को जामनगर या राजकोट जाना पड़ता है. शहरी इलाके के लोगों का मुख्य पेशा छोटा-मोटा व्यापार है. वहीं ग्रामीण इलाकों में लोग खेती-बाड़ी और पशुपालन पर आश्रित हैं. समुद्र के आसपास के गांवों के लोगों का मुख्य पेशा मछली पकड़ने का है. कहने को एस्सार की रिफाइनरी खंभालिया जिले में है लेकिन इससे स्थानीय लोगों को बहुत ज्यादा रोजगार नहीं मिल पाता. उन्हें रोजगार के लिए जामनगर, रोजकोट और अहमदाबाद जाना पड़ता है. यहां ग्रामीण इलाकों में दूध और घी का कारोबार भी बड़े पैमाने पर होता है. 

अहीर वोटरों का दबदबा
यहां सबसे ज्यादा अहीर वोटरों की संख्या है. न सिर्फ इनकी संख्या है बल्कि ये प्रभावी भी हैं. यही वजह है कि एक-दो अपवाद को छोड़ दें तो यहां से ज्यादातर अहीर ही विधायक रहे हैं. सतवारा और गढ़वी समाज की यहां अच्छी-खासी आबादी है. ये दोनों समाज का मुख्य पेशा खेती और पशुपालन है. खंभालिया विधानसभा में दलित वोटरों की संख्या 6 फीसदी के आसपास है. वहीं, आदिवासी 2 फीसदी हैं. यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 10 फीसदी के आसपास है. लोहाना समाज का वोट भी यहां ठीक-ठाक है.

कुल वोटरों की संख्या 2,76,309 है. इसमें 70 फीसदी वोटर ग्रामीण क्षेत्र के हैं. करीब 30 फीसदी शहरी इलाके के हैं. 

खंभालिया में 1 दिसंबर को पहले फेज में वोट डाले जाएंगे. यहां आप के इशुदान गढ़वी की बड़ी परीक्षा है. उनका मुकाबला खंभालिया में राजनीति के दो धुरंधरों से है. दोनों प्रभावशाली अहीर समाज हैं. अगर यहां से इशुदान जीत हासिल करते हैं तो वह एक तरह से इतिहास रचेंगे. फिलहाल इतना ही. 8 दिसबंर को तय होगा कि खंभालिया की जनता ने किसे आशीर्वाद दिया है.

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